Monday, January 24, 2011

गणतंत्र की स्थापना?

26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र ने भारतीय स्वीधान लागू कर अंगे्रजी कानून व गौरी सत्ता से राजनैतिक मुक्ति पाई थी तब से लेकर अब तक छह दशक बीत चुके हैं लेकिन संविधान पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया है। आज भी करोड़ों लोग मौलिक अधिकारों से वंचित हैं। खुले आसमान तले सोना, दवाई के अभाव में मरना व धनाभाव में शिक्षा से वंचित रहना लोगो की मजबूरी बना हुआ है। इन सब की जिम्मेदार अब तक रहीं केन्द्र सरकार है। सत्तासीन नेता मानसिक तौर पर देश की जनता को पूर्ण आजादी देने के समर्थक ही नही रहे। इसलिए संविधान को पूर्ण तौर पर लागू ना किया जा सका जिसके चलते 'कानून का राजÓ मात्र कागजों की शोभा बनकर रह गया और जनतंत्र के लिबास में पुंजीवाद को बढ़ावा दिया गया।
भ्रष्टाचार पुंजीवाद का गहना है जिससे बड़े कारोबारी व डेराधीशों के पास अकूत सम्पत्ति इकट्ठी हो गई। पुंजीवादी व्यवस्था के चलते सत्तासीन नेताओं ने भारी भीड़ जुटाने वाले डेराधीशों को संरक्षण प्रदान किया। ये लोग कानून को पैर की जूती समझते रहे हैं और कानून तोड़ कर अपने वैध-अवैध कारोबार जारी रखे हुए हैं। इन संस्थानों पर विभिन्न सरकारी एजेंसिया जिन पर राष्ट्र का करोड़ों रूपया वेतन व अन्य सुविधा के लिए खर्च हो रहा है झांकती तक नहीं है। कितने ही डेराधीश अपराधिक एवं राष्ट्रद्रोही गतिविधियों में शामिल पाए गये हैं।
भगवान, धर्म, कर्म व प्रेम जाल के नाम पर जनता की लूट जारी है। देश में अरबों का सेक्स कारोबार चल रहा है। जनता में आम चर्चा है कि ऐसे लोग विभिन्न करों की बड़े स्तर पर चोरी कर रहे हैं और इन संस्थानों में नशे व अवैध हथियार का कारोबार चलाने वालों की बड़ी सेना है जो राष्ट्र की विशाल बौद्धिक संपदा का सर्वनाश करने पर तुले हैं यदि समय रहते भारत सरकार न चेती और देशभर में ऐसे सभी संस्थानों की विशेष केन्द्रिय सुरक्षा एजेंसियों से जांच न करवाई गई और इनके सम्पत्ति भंडारों व सम्पत्ति स्रोतों की जांच न की गई तो ऐसे संस्थान राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन कर खड़े मिलेंगे और फिर समय-समय पर ब्लू स्टार, ब्लैक स्टार, ग्रीन स्टार ऑपरेशन करने पर सरकार को मजबूर होना पड़ेगा जिसका बड़ा खामियाजा राष्ट,व जनता को भुगतना पड़ेगा।
26 जनवरी गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर राष्ट्र का भला चाहने वाले नेताओं को 'कानून का राजÓ की स्थापना करने के लिए चिंतन करना चाहिए और भारतीय संविधान पूरे तौर पर लागू हो इसके लिए विशेष प्रयत्न एवं कार्ययोजना बना कर धरातल पर काम करना चाहिए ताकि असल गणतंत्र की स्थापना की जा सके।
                                                                                                                                   -बालकृष्ण सांवरिया

Saturday, November 20, 2010

सिरसा के सतगुरू रविदास मन्दिर में भव्य संत सम्मेलन आयोजित

सिरसा, 30 अक्टूबर। सतगुरू रविदास मिशन युवा प्रचार मंडल द्वारा आज रानियां रोड स्थित श्री गुरू रविदास मंदिर में दूसरे विशाल संत सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में उमड़े श्रद्धालुओं ने डेरा सचखंड बल्लां व अन्य स्थानों से पधारे संत-महात्माओं का शानदार अभिनंदन किया। इस कार्यक्रम में डेरा सचखंड बल्लां से विश्व प्रसिद्ध कीर्तन सम्राट संत सुरेंद्र दास जी, कपाल मोचन डेरा से संत रामदयाल जी, संत हरिदास जी व संत गरीब दास जी विशेष रूप से पधारे थे। पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में पहुंचने पर सिरसा की साध संगत ने महात्माओं का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें मोटरसाइकिलों के काफिले में आयोजन स्थल तक लेकर आए। यहां पहले से मौजूद साध संगत की भारी भीड़ ने पुष्पवर्षा व ढ़ोल नगाड़ों से आए संतों का अभिनंदन किया। कीर्तन सम्राट सुरेंद्र दास जी ने संत श्री गुरू रविदास की अमृत वाणी की वर्षा की और अनेक सुंदर भजनों से समां बांध दिया। उन्होंने दर्शन दीजे राम, विलंब न कीजे, ऐसी लाल तुम बिनु कौन करे, रविदास गुरू तेरे चरणां दी मैं धूल मत्थे नूं लावां सहित अनेक भजन प्रस्तुत किए वहीं गुरू रविदास जी के जीवन आदर्शों के बारे में विस्तार से व्याख्या की  उन्होंने कहा कि दलित समाज में गुरू रविदास, भगवान वाल्मीकि, संत कबीर, सदना, सैन जी महाराज सहित अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने सामाजिक भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए काम किया। संत जी ने कहा कि आज गुरू रविदास जी के सिद्धांत ऐसा चाहूं राज मैं, मिले सबन को अन्न, छोट-बड़े सब सम बसैं, रविदास रहें प्रसन्न को यूएनओ जैसी संस्था ने अपने एजेंडे में रखा है। उनके साथ पधारे अन्य संत-महात्माओं ने भी श्री गुरू रविदास जी के भजन व उनके उपदेशों के बारे में बताया। इस अवसर पर गुरू जी का लंगर भंडारा भी अटूट वितरित किया गया। भारी भरकम सुरक्षा व्यवस्था के बीच लगभग 3 घंटे तक कार्यक्रम चलता रहा और अंत तक श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहा। कार्यक्रम स्थल के बाहर विभिन्न स्टालें और तोरणद्वार मेले का माहौल बनाए हुए थे। कार्यक्रम में बाबा रामदेव मंदिर के महंत लीलानाथ, सिरसा के सांसद डॉ. अशोक तंवर, इनेलो के जिलाध्यक्ष पदम जैन, बहुजन समाज पार्टी के पूर्व प्रदेश महासचिव मूलचंद राठी, कैलाश चंद्र कानूनगो, डॉ. अंबेडकर सभा के प्रधान आत्मप्रकाश मेहरा, संत शिरोमणि श्री गुरू रविदास सभा के प्रधान सुभाष मेहरा, महासचिव मुरलीधर कटारिया, पूर्व महासचिव बंसीलाल दहिया, बसपा के कार्यालय सचिव बालकृष्ण सांवरिया, मिठूराम एडवोकेट नगर पार्षद, बलदेव मराड़, बुधराम मेहरा, अशोक ढ़ोसीवाल सहित अनेक गणमान्य लोगों ने शिरकत की। सतगुरू रविदास मिशन प्रचार मंडल के अध्यक्ष वीरेंद्र रंगा ने सभी अतिथियों का यहां पहुंचने पर आभार व्यक्त किया। मंच संचालन प्रवीन कटारिया ने किया। 

... ताकि असली गणतंत्र की स्थापना हो

सदियों पहले भारत गणराज्य के रूप में विकसित था शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, सभ्यता एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में अमीर था। दुनिया भारत को विश्वगुरू के रूप में मानती थी। कालांतर में विदेशी जातियों ने भारत में भेद पैदा कर अपना शासन कायम किया और देश की जनता को हजारों जातियों में बांट कर एक विशेष राजतंत्र की स्थापना की जो शोषणकारी रहा।
समय बीतता गया और शोषणकारी राजाओं के समय विदेशी शक्तियों ने देश को लूटा और राजाओं को शक्ति द्वारा हराकर अपना शासन कायम किया हजारों वर्ष इन विदेशी हुक्मरानों का शासन रहा जिसमें शोषणकारी राजाओं सहित कल्याणकारी व्यवस्था देने वाले राजा भी रहे जिसके चलते भारत की जनता ने इन विदेशी हुक्मरानों को स्वीकार किया। इस दौरान बड़े स्तर पर सामाजिक व धार्मिक परिवर्तन भी हुए। लोगो के जबरन धर्मपरिवर्तन भी करवाये गये।
सौलह सौ ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से ब्रिटिश व्यापार के बहाने भारत में आए और धीरे-धीरे शक्ति के द्वारा भारतीय राजाओं को पराजित करके भारत पर शासन करने लगे। ब्रिटिश लोग भारत की सामाजिक व धार्मिक संरचना को पूरी तरह से समझ न पाए और वे बहुत लंबे समय तक देश पर शासन न कर सके। 1857 के स्वराज आंदोलन की परिणति 1947 की आजादी के रूप में हुई। 
आजादी के दौरान देश के टुकड़े हुए और राजनीतिक परिवर्तन या राजनीतिक आजादी मिली लेकिन स्वतंत्रता के सिपाहियों ने आजादी के बारे जो सपने संजोए थे वे पूरे न हो सके और राजनीतिक परिवर्तन के बावजूद भी व्यवस्था में परिवर्तन न हुआ।
मूल भारतीय जो भारत की धरती के असली वारिस हैं और विभिन्न जातियों में बंटे हुए हैं जिसमें संविधानिक रूप से अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां व पिछड़ा वर्ग सम्मिलित है को संविधान के लागू होने के 60 वर्ष बाद भी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक आजादी न मिली है। 
भारत की जनता अशिक्षा, बेकारी, भय, भेद व भ्रष्टाचार के चलते विदेशी शक्तियों को स्वीकार करती आ रही है जिसके कारण राष्ट्र की संस्कृति व सभ्यता भी तहस-नहस हो रही है। अब समय बदलाव का है भारत की जनता को स्वत्व व स्वतंत्रता का बीज बो कर भय, भेद व भ्रष्टाचार को मिटाना है और भारतीयता को अपनाकर राजनीति में विदेशी सभ्यता व व्यवस्था अपनाने वाले राजनीतिक दलों को किनारे करके भारतीयता व मूलभारतीयों को स्थापना देने वाले नेताओं एवं राजनीतिक दलों को सत्ता सौंपने की ओर बढऩा है ताकि पुन: भारत का खोया हुआ असली गणतंत्र स्थापित किया जा सके। और मूलभारतीयों की सत्ता में पूर्ण भागीदारी हो सके। 

गरीबों के दो लाख तक के सभी कर्जे हो माफ - बालकृष्ण सांवरियां

राष्ट्रीय मजदूर कल्याण मंच भारत (मुख्य इकाई) के महासचिव बालकृष्ण सांवरियां ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मांंग की है कि किसानों की कर्जामाफी की तर्ज पर देशभर के अनुसूचित जातियों, पिछड़ों, महिलाओं व अन्य कमजोर वर्ग के सभी कर्जे माफ किये जावें। उन्होंने कहा कि देश के बहुसंख्य गरीब वर्ग की राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका है। मजदूर वर्ग विभिन्न श्रेणियों में जैसे खेतीहर मजदूर, भवन निर्माण मजदूर, रेहड़ी-ठेली वाला मजदूर, भ_ा मजदूर, रिक्शा-ऑटो रिक्शा चालक, छोटे दुकानदार, मंझले उद्योग एवं दुकानों पर काम कर रहे कर्मचारी के रूप में विपरीत आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों में राष्ट्र निमार्ण एवं राष्ट्र सेवा में जुटा हुआ है लेकिन सरकार द्वारा मजदूरों की राष्ट्रीय भावना और राष्ट्र सेवा का मुल्यांकन नही किया जा रहा।
मजदूर वर्ग भारी कर्जे तले दबा हुआ है और आए दिन देश भर में कर्जे के कारण सैंकड़ों मजदूर मौत का ग्रास बन रहे हैं जिससे मजदूर वर्ग का जिंदा रहने का संविधानिक अधिकार भी छिन रहा है। भारत के संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से जिंदा रहने का अधिकार दिया है जोकि सरकार की शोषणकारी आर्थिक नीतियों के चलते पूरा मजदूर वर्ग आर्थिक-सामाजिक पीड़ा झेल रहा है बड़ी संख्या में मजदूरों के पास दो वक्त की रोटी भी पूरी नही हो रही है। जिससे मजदूरों के बच्चे कुपोषण का शिकार है। कुपोषण के चलते मजदूरों के बच्चों की शिक्षा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। श्री सांवरिया नें कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के सभी बैंकिंग प्रतिष्ठानों से दो लाख रूपये तक के सभी कर्जो की रिपोर्ट मंगवाकर एक वृहित योजना के तहत सभी स्कीमों के कर्जे एक मुश्त बिना शर्त माफ किया जावें ताकि बहुसंख्य मजदूर वर्ग राहत महसूस करे।

Friday, August 13, 2010

एंडरसन मामले को दबाने के लिए बढ़ाई कीमतें- राजाराम

रोहतक। बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय उपप्रधान सांसद एवं हरियाणा प्रदेश के प्रभारी राजाराम ने महंगाई व तेल उत्पादों की बढ़ी हुई कीमतों के विरोध में विशाल प्रदर्शन के दौरान कहा कि कांग्रेस सरकार ने बिना किसी वजह के तेल उत्पादों की कीमतें बढ़ा कर साफ कर दिया है कि तेल उत्पादों की कीमतें बढ़ाने का कोई तकनीकी कारण नही है। उन्होंने कहा कि 20 हजार से ज्यादा लोगों की हत्या के आरोपी एंडरसन को बचाने के मामले को दबाने व जनता का ध्यान हटाने के मकसद से महंगाई की गई और तेल उत्पादों की कीमतें बढ़ाई गई हैं। उन्होंने कहा कि देश के मीडिया में एंडरसन मामला छाया हुआ था और एंडरसन को बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का नाम सुर्खियों में था। कांग्रेस ने एंडरसन मामले से बचने के लिए मंहगाई के बोझ से पूरे देश को लाद दिया। जैसे ही महंगाई बढ़ी, देश की जनता व सम्पूर्ण मीडिया का ध्यान एंडरसन मामले से हटकर महंगाई की ओर आ गया है। देश भर में जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे और हाहकार मच गया। देश का पूरा मीडिया और जनता महंगाई की मार के लिए चिल्ला रहा है और कांग्रेस सरकार और उसके नेता चुप्पी साधे बैठे हैं। 
उन्होंने कहा कि बहुजन समाज पार्टी ने देश भर में पेट्रोल, डीजल, कैरोसीन, अन्य पैट्रोलियम पदार्थ व महंगाई के खिलाफ प्रर्दशन कर रही है इसी कड़ी में हरियाणा प्रदेश में भी प्रदर्शन का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में विपरीत प्रस्थितियों के चलते बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता रोहतक पंहुचें हैं। जिससे लगता है कि भविष्य में प्रदेश भर में बसपा के समर्थन में लहर चलेगी और पार्टी मजबूत होगी। इस अवसर पर श्री राजाराम ने राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमारी मायावती की ओर से नियुक्त किये गये प्रदेशअध्यक्ष नरेश सारन व उपाध्यक्ष चतरसिंह कश्यप के नामों की घोषणा की। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया की सभी वर्गो को साथ लेकर पार्टी के लिए काम करें और अनुशासन में रहें।

आजादी के मायने

बेशक राष्ट्र को आजाद हुए 63 वर्ष पूरे हो गये हैं। पूरा राष्ट्र आजादी की 64वीं वर्षगांठ मना रहा है लेकिन हरियाणा प्रदेश में अनुसूचित जाति, पिछड़ा व अन्य कमजोर वर्ग पूर्ण तौर पर आजाद नही हैं। आरक्षण का लाभ ले रहे अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग के उच्च अधिकारी भी अंधेरे में रोते हुए नजर आते हैं। यही हाल राजनीति का है राजनीति में काबिल और पात्र नेता को भी मात्र जाति विशेष का होने पर दरकिनार कर दिया जाता है।
हरियाणा प्रदेश में बहुमत जाति के लोग पूरी स्वतंत्रता से सामाजिक/धार्मिक आयोजन भी नही कर सकते हैं। कहीं इन्हे मंदिर जाने से रोका जाता है, कहीं उनके गुरू पीरों के त्यौहारों पर अड़ंगे डाले जाते है कहीं शादी के समय घोड़ी से उतार दिया जाता है, कहीं आगजनी व कत्ल किये जाते हैं, कहीं सरेआम मोटरवाहनों से सड़क पर घसीट-घसीट कर मारा जाता है।
प्रेम संबंधों पर भी जाति विशेष के लोग नादिरशाही चला रहें हैं। कानून को जूती की नोंक पर रखने वाले मान्यता प्राप्त गुंडों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। कौन किस से शादी करेगा, कौन किसके साथ बैठेगा, कौन किस पार्टी को वोट देगा, कौन किस स्कूल में पढ़ेगा, कौन किस मोहल्ले में रहेगा ये सब निर्धारण आदमी की स्वतंत्रता या मर्जी में नही इनका निर्धारण भी सत्ता संरक्षण प्राप्त ये असंवैधानिक संगठन ही करेंगे। राज्य में जारी विभिन्न संगठनों के फतवों से यही जाहिर होता है।
प्रदेश में 'कानून का राजÓ नाम मात्र पुस्तकों में पढऩे के लिए ही बचा है। मोबाइल चोरी तक की प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए पुलिस को पैसे देने पड़ते हैं तो दूसरे अपराधों में कार्रवाही होगी या नही, पुलिस पर्चा दर्ज करेगी या नहीं यह निश्चित नही। आमजन थानों के चक्कर काट रहें हैं लेकिन कोतवाल दारू, सट्टा व नारकोटिक्स अपराधियों से मिटिंग करने में व्यस्त हैं, अपराध निरंतर बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार चुप है। संविधान प्रदत्त शक्तिया प्राप्त मंत्री जनता के पैसे पर ऐश काट रहे हैं। ऑफ द रिकार्ड करोड़ों की सौदेबाजियां कर रहे हैं। नेताओं की इस प्रवृत्ति के चलते अपराधियों को सरंक्षण मिल रहा है।
प्रदेश में सट्टा, शराब व अन्य नारकोटिक्स माफिया गांव-शहर के अंतिम व्यक्ति तक पंहुच बनाए हुए हैं लेकिन पुलिस व प्रशासनिक ढांचा 'कानून का राजÓ स्थापित करने में अंतिम व्यक्ति छोड़ जन प्रतिनिधियों तक भी पूरी पंहुच न बना पाया है। पुलिस अपराधिक संगठनों व अपराधियों की सहयोगी हो गई है। ऐसे में पूरे प्रदेश में भय का माहौल है भयभीत आदमी या तो मर जाता है या भयमुक्त होकर क्रांति कर देता है। हरियाणा प्रदेश के मामले में यदि केन्द्र सरकार समय रहते न चेती तो प्रदेश काबू से बाहर हो सकता है क्योंकि बहुसंख्य वर्ग असंतोष में है और सत्तासीन लोगों ने इस असंतोष को भय मान रखा है। इस तरह से प्रदेश में आजादी के 63 वर्ष बीत जाने पर भी आजादी के मायने समझ से परे हैं। केन्द्र सरकार की संविधानिक जिम्मेदारी बनती है कि राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक सुरक्षित रह,े प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकार सुरक्षित रहे, उसे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक स्वतंत्रता हासिल हो। केन्द्र सरकार को चाहिए कि हरियाणा प्रदेश का प्रत्येक किनारे से मुल्यांकन करे तथा प्रदेश में शक्तियों का परिवर्तन करे ताकि प्रदेश में आजादी बची रहे।
                                                                                              -बालकृष्ण सांवरियां