Friday, August 13, 2010

आजादी के मायने

बेशक राष्ट्र को आजाद हुए 63 वर्ष पूरे हो गये हैं। पूरा राष्ट्र आजादी की 64वीं वर्षगांठ मना रहा है लेकिन हरियाणा प्रदेश में अनुसूचित जाति, पिछड़ा व अन्य कमजोर वर्ग पूर्ण तौर पर आजाद नही हैं। आरक्षण का लाभ ले रहे अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग के उच्च अधिकारी भी अंधेरे में रोते हुए नजर आते हैं। यही हाल राजनीति का है राजनीति में काबिल और पात्र नेता को भी मात्र जाति विशेष का होने पर दरकिनार कर दिया जाता है।
हरियाणा प्रदेश में बहुमत जाति के लोग पूरी स्वतंत्रता से सामाजिक/धार्मिक आयोजन भी नही कर सकते हैं। कहीं इन्हे मंदिर जाने से रोका जाता है, कहीं उनके गुरू पीरों के त्यौहारों पर अड़ंगे डाले जाते है कहीं शादी के समय घोड़ी से उतार दिया जाता है, कहीं आगजनी व कत्ल किये जाते हैं, कहीं सरेआम मोटरवाहनों से सड़क पर घसीट-घसीट कर मारा जाता है।
प्रेम संबंधों पर भी जाति विशेष के लोग नादिरशाही चला रहें हैं। कानून को जूती की नोंक पर रखने वाले मान्यता प्राप्त गुंडों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। कौन किस से शादी करेगा, कौन किसके साथ बैठेगा, कौन किस पार्टी को वोट देगा, कौन किस स्कूल में पढ़ेगा, कौन किस मोहल्ले में रहेगा ये सब निर्धारण आदमी की स्वतंत्रता या मर्जी में नही इनका निर्धारण भी सत्ता संरक्षण प्राप्त ये असंवैधानिक संगठन ही करेंगे। राज्य में जारी विभिन्न संगठनों के फतवों से यही जाहिर होता है।
प्रदेश में 'कानून का राजÓ नाम मात्र पुस्तकों में पढऩे के लिए ही बचा है। मोबाइल चोरी तक की प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए पुलिस को पैसे देने पड़ते हैं तो दूसरे अपराधों में कार्रवाही होगी या नही, पुलिस पर्चा दर्ज करेगी या नहीं यह निश्चित नही। आमजन थानों के चक्कर काट रहें हैं लेकिन कोतवाल दारू, सट्टा व नारकोटिक्स अपराधियों से मिटिंग करने में व्यस्त हैं, अपराध निरंतर बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार चुप है। संविधान प्रदत्त शक्तिया प्राप्त मंत्री जनता के पैसे पर ऐश काट रहे हैं। ऑफ द रिकार्ड करोड़ों की सौदेबाजियां कर रहे हैं। नेताओं की इस प्रवृत्ति के चलते अपराधियों को सरंक्षण मिल रहा है।
प्रदेश में सट्टा, शराब व अन्य नारकोटिक्स माफिया गांव-शहर के अंतिम व्यक्ति तक पंहुच बनाए हुए हैं लेकिन पुलिस व प्रशासनिक ढांचा 'कानून का राजÓ स्थापित करने में अंतिम व्यक्ति छोड़ जन प्रतिनिधियों तक भी पूरी पंहुच न बना पाया है। पुलिस अपराधिक संगठनों व अपराधियों की सहयोगी हो गई है। ऐसे में पूरे प्रदेश में भय का माहौल है भयभीत आदमी या तो मर जाता है या भयमुक्त होकर क्रांति कर देता है। हरियाणा प्रदेश के मामले में यदि केन्द्र सरकार समय रहते न चेती तो प्रदेश काबू से बाहर हो सकता है क्योंकि बहुसंख्य वर्ग असंतोष में है और सत्तासीन लोगों ने इस असंतोष को भय मान रखा है। इस तरह से प्रदेश में आजादी के 63 वर्ष बीत जाने पर भी आजादी के मायने समझ से परे हैं। केन्द्र सरकार की संविधानिक जिम्मेदारी बनती है कि राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक सुरक्षित रह,े प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकार सुरक्षित रहे, उसे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनैतिक स्वतंत्रता हासिल हो। केन्द्र सरकार को चाहिए कि हरियाणा प्रदेश का प्रत्येक किनारे से मुल्यांकन करे तथा प्रदेश में शक्तियों का परिवर्तन करे ताकि प्रदेश में आजादी बची रहे।
                                                                                              -बालकृष्ण सांवरियां

No comments:

Post a Comment