Saturday, November 20, 2010

... ताकि असली गणतंत्र की स्थापना हो

सदियों पहले भारत गणराज्य के रूप में विकसित था शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति, सभ्यता एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में अमीर था। दुनिया भारत को विश्वगुरू के रूप में मानती थी। कालांतर में विदेशी जातियों ने भारत में भेद पैदा कर अपना शासन कायम किया और देश की जनता को हजारों जातियों में बांट कर एक विशेष राजतंत्र की स्थापना की जो शोषणकारी रहा।
समय बीतता गया और शोषणकारी राजाओं के समय विदेशी शक्तियों ने देश को लूटा और राजाओं को शक्ति द्वारा हराकर अपना शासन कायम किया हजारों वर्ष इन विदेशी हुक्मरानों का शासन रहा जिसमें शोषणकारी राजाओं सहित कल्याणकारी व्यवस्था देने वाले राजा भी रहे जिसके चलते भारत की जनता ने इन विदेशी हुक्मरानों को स्वीकार किया। इस दौरान बड़े स्तर पर सामाजिक व धार्मिक परिवर्तन भी हुए। लोगो के जबरन धर्मपरिवर्तन भी करवाये गये।
सौलह सौ ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से ब्रिटिश व्यापार के बहाने भारत में आए और धीरे-धीरे शक्ति के द्वारा भारतीय राजाओं को पराजित करके भारत पर शासन करने लगे। ब्रिटिश लोग भारत की सामाजिक व धार्मिक संरचना को पूरी तरह से समझ न पाए और वे बहुत लंबे समय तक देश पर शासन न कर सके। 1857 के स्वराज आंदोलन की परिणति 1947 की आजादी के रूप में हुई। 
आजादी के दौरान देश के टुकड़े हुए और राजनीतिक परिवर्तन या राजनीतिक आजादी मिली लेकिन स्वतंत्रता के सिपाहियों ने आजादी के बारे जो सपने संजोए थे वे पूरे न हो सके और राजनीतिक परिवर्तन के बावजूद भी व्यवस्था में परिवर्तन न हुआ।
मूल भारतीय जो भारत की धरती के असली वारिस हैं और विभिन्न जातियों में बंटे हुए हैं जिसमें संविधानिक रूप से अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां व पिछड़ा वर्ग सम्मिलित है को संविधान के लागू होने के 60 वर्ष बाद भी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक आजादी न मिली है। 
भारत की जनता अशिक्षा, बेकारी, भय, भेद व भ्रष्टाचार के चलते विदेशी शक्तियों को स्वीकार करती आ रही है जिसके कारण राष्ट्र की संस्कृति व सभ्यता भी तहस-नहस हो रही है। अब समय बदलाव का है भारत की जनता को स्वत्व व स्वतंत्रता का बीज बो कर भय, भेद व भ्रष्टाचार को मिटाना है और भारतीयता को अपनाकर राजनीति में विदेशी सभ्यता व व्यवस्था अपनाने वाले राजनीतिक दलों को किनारे करके भारतीयता व मूलभारतीयों को स्थापना देने वाले नेताओं एवं राजनीतिक दलों को सत्ता सौंपने की ओर बढऩा है ताकि पुन: भारत का खोया हुआ असली गणतंत्र स्थापित किया जा सके। और मूलभारतीयों की सत्ता में पूर्ण भागीदारी हो सके। 

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